मै आजाद हूँ

Author   /  Reporter :     Team Hindustan

3 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले के भाबरा में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर आजाद का नाम दुनिया के महान क्रांतिकारियों में शुमार है। वह कसम खाए थे कि जीते-जी अंग्रेजों के हाथों में नहीं आएंगे। आजादी पाने के लिए हद तक जाना और बेखौफ अंदाज दिखाना, इन दोनों ही बातों से चंद्रशेखर आजाद आज अमर हैं।  27 फरवरी, 1931 को जब वह इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में किसी से मिलने गए तो मुखबिर ने इसकी सूचना पुलिस को दे दी। पुलिस ने उन्हें चारों तरफ से घेर लिया। आजाद उन पर गोलियां चलाने लगे। जब उनके माउजर की गोलियां खत्म हो गई तो आखिरी गोली उन्होंने खुद को ही मार ली और यह प्रण पूरा किया कि जीते-जी अंग्रेजों के हाथ में नहीं आएंगे। आइए जानते हैं उनके बारे में......

  • आजाद ने झांसी के पास एक मंदिर में 8 फीट गहरी और 4 फीट चौड़ी गुफा बनाई थी। वहां वह पुजारी के वेश में रहते थे।
  • कहा जाता है कि एक दिन अंग्रेजों ने झाँसी स्थित  आजाद के ठिकाने पर धावा बोल दिया। तब आजाद ने अंग्रेजों को स्त्रीवेश धारण कर चकमा दिया था।
  • जलियांवाला केस के बाद आजाद ने एमपी के झाबुआ में आदिवासियों से तीरंदाजी की ट्रेनिंग ली। वह अपने पास हमेशा माउजर रखते थे।
  • बताया जाता है कि आजाद साथियों के साथ रूस जाकर वहां के नेता स्टालिन की मदद लेना चाहते थे। इसके लिए जवाहर लाल नेहरू से 1200 रुपए मांगे थे
  • आजाद नहीं चाहते थे कि उनकी फोटो अंग्रेजों के हाथ लगे। इसके लिए उन्होंने दोस्त को झांसी भेजा, ताकि अंतिम फोटो की प्लेट नष्ट हो जाए। लेकिन, वह नही टूटी।
  • एक बार दोस्त रुद्रनारायण की आर्थिक स्थिति को देखकर वह खुद को अंग्रेजों के हवाले करने को तैयार हो गए। ताकि, इनाम के पैसे से दोस्त का घर अच्छे से चल सके।
  • आजाद ने अपनी जिंदगी के 10 साल फरार रहते हुए बिताए। इसमें ज्यादातर समय झांसी और आसपास के जिलों में ही बीता।
  • स्वतंत्रता संग्राम में कदम रखते हुए वह अरेस्ट हुए। मुकदमे में उन्होंने अपना नाम-आजाद, पिता का नाम- स्वाधीन, घर- जेल बताया।
  • अगस्त 1925 को काकोरी स्टेशन पर ट्रैन रोक कर वह अपने 6 साथियों के साथ उतरे। उनमे से एक ने जोर से कहा, ‘सारे यात्री अपनी-अपनी जगह बैठे रहे। हम डकैत नहीं है। हम तो सिर्फ अंग्रेजों का खजाना लूटने आए है ,’
  • लाला लाजपत राय के निधन के बाद भगत सिंह और अन्य कार्यकर्ताओं को आजाद ने ट्रेनिंग दी। भगत सिंह उन्हें अपना गुरु मानते थे।
  • गांधीजी द्वारा असहयोग आंदोलन को अचानक बंद कर देने के कारण उनकी विचारधारा में बदलाव आया और वे क्रान्तिकारी गतिविधियों से जुड़ कर हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य बन गए ।
  • चंद्रशेखर सिर्फ 14 साल की उम्र में 1921 में गांधी जी के असहयोग आंदोलन से जुड़ गए थे और तभी उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और जब जज ने उनसे उनके पिता नाम पूछा तो जवाब में चंद्रशेखर ने अपना नाम आजाद और पिता का नाम स्वतंत्रता और पता जेल बताया।यहीं से चंद्रशेखर सीताराम तिवारी का नाम चंद्रशेखर आजाद पड़ा।
  • एक बार इलाहाबाद में पुलिस ने उन्हें घेर लिया और गोलियां दागनी शुरू कर दी। दोनों ओर से गोलीबारी हुई। चंद्रशेखर आजाद ने अपने जीवन में ये कसम खा रखी था कि वो कभी भी जिंदा पुलिस के हाथ नहीं आएंगे। इसलिए उन्होंने खुद को गोली मार ली।
  • जिस पार्क में उनका निधन हुआ था आजादी के बाद इलाहाबाद के उस पार्क का नाम बदलकर चंद्रशेखर आजाद पार्क और मध्य प्रदेश के जिस गांव में वह रहे थे उसका धिमारपुरा नाम बदलकर आजादपुरा रखा गया।
  • आजाद का प्रारम्भिक जीवन आदिवासी इलाके में बीता इसलिए बचपन में आजाद ने भील बालकों के साथ खूब धनुष बाण चलाए। इस प्रकार उन्होंने निशानेबाजी बचपन में ही सीख ली थी।