कपालिक- इंसान की खोपड़ी में खाना और पानी पीने वाला संप्रदाय

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अगर आप को कोई इंसान की खोपड़ी में खाना या पानी दे तो आप यकीनन कभी न खाए यहाँ तक की आप सोच भी नहीं सकते, जबकि कापालिक संप्रदाय के लोग हमेशा इंसान की खोपड़ी में ही भोजन करते और पानी पीते हैं।

आपको बता दे तंत्र शास्त्र के मुताबित कापालिक संप्रदाय के लोग शैव संप्रदाय के अनुयायी होते हैं। क्योंकि ये लोग मानव खोपडिय़ों (कपाल) के द्वारा ही सब कुछ खाते-पीते हैं, इसकारण से इन्हें ‘कापालिक’ कहा जाता है।

प्राचीनकाल के समय में कापालिक साधना को विलास तथा वैभव का रूप मानकर कई साधक इसमें शामिल हुए। इस प्रकार से इस मार्ग को भोग मार्ग का ही एक विकृत रूप भी बना दिया गया। यहां तक की मूल अर्थों में कापालिकों की चक्र साधना को भोग विलास तथा काम पिपासा शांत करने का एक साधन बना दिया गया। इस तरह से इस मार्ग को घृणा के रूप में हर कोई देखा जाने लगा।

जो सही मायनो में कापालिक थे, और इन्होने अलग-अलग हो कर व्यक्तिगत साधनाएं शुरू भी कर दीं। आदि शंकराचार्य ने कापालिक संप्रदाय में अनैतिक आचरण का काफी विरोध भी किया, जिसके कारण इस सप्रदाय का सबसे बड़ा हिस्सा नेपाल के सीमावर्ती इलाके में तथा तिब्बत में भी कुछ चला गया! यह संप्रदाय तिब्बत में निरंतर गतिशील रहा, जिससे की बौद्ध कापालिक साधना के रूप मे यह संप्रदाय आज भी जिन्दा रह सका।

कापालिक समुदाय की साधना - इतिहासकारो का मानना हैं की कापालिक पंथ से शैव शाक्त कौल मार्ग का प्रचलन हुआ। इस संप्रदाय से जो भी संबंधित साधनाएं काफी ज्यादा महत्वपूर्ण रही हैं। कापालिक चक्र में मुख्य साधक ‘भैरव’ तथा साधिका को ‘त्रिपुर सुंदरी’ भी कहा जाता है तथा काम शक्ति के विभिन्न साधन से इनमें असीम शक्तियां आ जाती हैं।

इनके द्वारा फल की मूल इच्छा मात्र से अपने शारीरिक अवयवों पर नियंत्रण रखना या किसी भी प्रकार के निर्माण तथा विनाश करने की बेजोड़ शक्ति केवल इसी मार्ग से प्राप्त की जा सकती है। इस मार्ग में कोई भी कापालिक अपनी भैरवी साधिका को पत्नी के रूप में भी प्राप्त या हासिल कर सकता था। यहाँ तक की इनके मठ जीर्णशीर्ण अवस्था मे उत्तरी पूर्व राज्यों में आज भी देखे जाते हैं।

यामुन मुनि के शिवपुराण, आगम प्रामाण्य तथा आगम पुराण में कई तांत्रिक संप्रदायों के भेद दिखाए गए हैं। वाचस्पति मिश्र ने 4 माहेश्वर संप्रदायों के नाम लिये हैं। ऐसा लगता है कि श्रीहर्ष ने नैषध में समसिद्धान्त नाम से जिसके बारे में बताया था, वह कापालिक संप्रदाय ही है।

इस समुदाय के इष्टदेव जो कापालिक साधनाओं में महाकाली, भैरव, चांडाली, चामुंडा, शिव तथा त्रिपुरासुंदरी देवी-देवताओं की पूजा-साधना होती है। प्राचीन काल के समय में मुख्य कापालिक साथी कापालिकों की काम शक्ति को मंत्र मात्र से न्यूनता तथा उद्वेग देते थे, जिसके कारण योग्य मापदंड में यह साधना पूरी हो जाती थी। इस तरह यह अद्भुत मार्ग लुप्त होते हुए भी गुप्त रूप से आज भी सुरक्षित है। यहाँ तक की कई सारे तांत्रिक मठों मे आज भी गुप्त रूप से कापालिक अपनी तंत्र साधनाएं करते रहते हैं।