हठ योग

Author   /  Reporter :     Pawan Mishra

योग का बहुत महत्व है| इससे मिलने वाले फायदों से कोई भी अज्ञात नहीं है| योग से ना केवल शरीर को शक्ति मिलती है, बल्कि कई रोगो से निजाद दिलाने में भी योग का बड़ा योगदान है| योग से मिलने वाले लाभो को देखते हुए सिर्फ भारत देश में ही नहीं बल्कि विदेशो में भी इसे अपनाया जा रहा है|

योग के अंतगर्त कई आसान आते है| इनमे से एक योग है हठयोग| हठयोग को नियमित रूप से करने से स्वास्थ्य सुधरता है और मानसिक शांति प्राप्त होती है| यहाँ तक की इस योग को करने से अन्य योग क्रियाओ को करने में भी सफलता मिलती है| हठयोग शारीरिक और मानसिक विकास को बेहतर बनाने के लिए योगियों द्वारा अभ्यास किया गया सबसे प्रचलित योग है| यह विश्व की प्राचीनतम प्रणालियों में से एक है| इस योग को करने से मेरुदंड लचीला बनता है, रक्त संचार सुधरता है, अशुद्धियों का उत्सर्जन होता है आदि|

हठ ‘ह’  व ‘ठ’ दो शब्दों से मिलकर बनता है। ‘ह’ का अर्थ होता है ‘सूर्य’ और ‘ठ’ का अर्थ ‘चंद्र’ है। अपितु हठ योग इन् दोनों का संयोजन या एकीकरण है। हमारी हिन्दू संस्कृति में माना जाता है की स्वयं भगवान शिव ने इस योग को दिया है|

यह योग मन और प्राण में छिपी अनंत शक्तियों का विकास करने वाला है। योगी, जॉब करने वाले, यहाँ तक की गृहस्थ जीवन में रह रहे लोग भी इसे अपनाकर इसका लाभ प्राप्त कर सकते है| इस योग के सात अंग बताए गए हैं जैसे की षट्कर्म, आसन, मुद्रा, प्रत्याहार, प्राणायाम, ध्यान और समाधि|

षटकर्म

षटकर्म का अर्थ होता है छः कर्म। षट्कर्म हठयोग में बतायी गयी छः क्रियाएँ हैं। यह आसन हमारे शरीर में शक्ति की वृद्धि करते हैं। इनसे हमारे अंदर सुख तथा शांति का समावेश होता है षटकर्म के अंतगर्त नेति, धौति, नौली, कपाल भाति, त्राटक और बस्ति आते है

नेति के भी दो प्रकार होते हैं – जलनेति और सूत्रनेति

जबकि धौति बारह प्रकार में विभाजित है – वातसार धौती, वारिसार धौती, बहिव्सार धौती, बहिष्कृत धौती, दंत मूल धौती, जिव्हामूल धौती, कर्णरन्ध्र धौती, कपाल रन्ध्र धौती, दंड धौती, वमन धौती, वस्त्र धौती और मूलशोधन धौती।

आसन

सुखपुर्वक और स्थिरतां से जिसमे बैठ सके वही उप्युक्त आसन कहलाता है। किन्तु हठयोग मे बहोत से आसनो का वर्णन किया गया है। यह आसान स्वास्थ्य लाभ और शारीरिक व्याधि से मुक्ति के लिए किये जाते है। आसनो के अभ्यास से शरीर सशक्त, हल्का और चुस्त बनता है। इसे करने से शरीर से कई विकारों का विनाश हो जाता है। हठयोग आसनों के अभ्यास से शरीर शक्तिशाली, तेजोमय, दृढ़, हल्का और रोग रहित बन जाता है। 

प्राणायाम

प्राणायाम का क्षेत्र बहुत ही विस्तारक है| प्राणायाम का अर्थ होता है प्राण पर नियंत्रण। हठयोग में कुंडलीनी जाग्रुती के लीये प्राणायाम को एकमात्र साधन माना गया है| इसे कई लोग “कुम्भक” के नाम से भी जानते है। मन तथा इंद्रियों पर नियंत्रण पाने के लिए यह व्यायाम आव्यशक है। प्राणायाम की सिद्धियों से प्रत्याहार की प्राप्ति होती है और शरीर शक्ति तथा नवीन ऊर्जा से आप्लावित हो जाता है।

मुद्रा

हठयोग मे आसन और प्राणायाम की तरह मुद्रा भी कंडलीनी जाग्रुति का एक साधन है। यह आसान आपके मन को आत्मा के साथ संयुक्त करने में सहायता करता है। मुद्रा का अभ्यास योग्य मार्गदर्शक के उपस्थिति में ही किया जाना चाहिए। इसके अलावा आसन और प्राणायाम दोनो क्रियाओं के परिपुर्ण होने के बाद ही मुद्रा मे प्रवेश करना चाहिए। मुद्रा को करने से मानसिक एकाग्रता और स्थिरता प्राप्त होती है।

प्रत्याहार

जैसा की हम सभी जानते है की हमारी आँखे देखने का कार्य करती है, नाक सूंघने का, कान सुनने का, और त्वचा से स्पर्श का अनुभव होता है और जीभ से हमें स्वाद का पता चलता है। लेकिन क्या आप जानते है असलियत में दृश्य तो आँखे नहीं बल्कि बैठा मन देखना चाहता है।

प्रत्याहार में हम अपनी इंद्रियों को साधते है। और जब इनकी ज़रुरत होती है तभी इनका प्रयोग करते है। जितना हो सके हम इनको शांत रखते है। प्रत्याहार में हमें मन को साधना होता है। इसमें हम इंद्रियों के मालिक बनने लगते है।

ध्यानासन

ध्यान लगाने के लिए किये जाने वाले आसनों को ध्यानासन कहा जाता है। शरीर में शक्तियों का समावेश करने और सामंजस्य बनाने, इसके अतिरिक्त मन को शांति तथा आलौकिक आनंद से परिपूर्ण करने में ये आसन फायदेमंद होते है। इन से आप ध्यान, धारणा, और समाधि का सहज ढंग से अभ्यास कर सकते हैं।

समाधि

आज के वक्त में हर इन्सान सुख एवं शांति के लिये लालायित है। इसलिए ऋषि मुनीओं ने ऐसी आध्यात्मविध्या ढुंढ निकली है जिससे व्यक्ति सुख शान्ति का अनुभव कर सकता है, जो कभी खत्म नहीं होती। इसी सिद्धांत को समाधि में बताया गया है। किन्तु समाधि को पाने के लिये कठिन परिश्रम अनिवार्य है।

किन्हें माना गया प्रमुख आचार्य

हठयोग साधना की मुख्य धारा शैव रही है और बाद में इसे सिद्धों और नाथों ने अपनाया। बताया जाता है कि मत्स्येन्द्र नाथ और गोरख नाथ हठ योग के प्रमुख आचार्य माने गए हैं। साथ ही कहा जाता है कि गोरखनाथ के अनुयायी प्रमुख रूप से हठयोग की साधना करते थे और उन्हें नाथ योगी भी कहा जाता है। इसके अलावा शैव धारा के अतिरिक्त बौद्धों ने भी हठयोग की पद्धति अपनायी थी।


सबसे प्राचीन विधा

कुछ मान्‍यताओं के मुताबिक हठ योग को सबसे पहले भगवान शिव ने किया था। इस योगासन को भारतीय योग की सबसे प्राचीन विधा माना जाता है और कई सदियों से भारत के योगियों का द्वारा इसका अभ्यास भी किया गया है।


ये हैं लाभ

हठ योग को नियमित रूप से करने से ढेरों फायदें होते हैं। ये आपके शरीर के इम्यून सिस्टम को मजबूत करता है और टॉक्सिंस को शरीर से बाहर का रास्ता दिखाता है। वहीं जो लोग रीढ़ की हड्डी की समस्या से जूझ रहे हैं उनके लिए हठ योग काफी फायदेमंद बताया जाता है क्योंकि ये लोगों की रीढ़ की हड्डी को सही रखने में मदद करता है। इसके अलावा हठ योग तनाव को दूर रखने में भी काफी कारगार है और आपकी ग्रंथियों की कार्यप्रणाली को भी सही रखता है।