पहाड़ों की नारी व्यथा

Author   /  Reporter :     Dashmesh Kaur (Mahi)

आज के दौर मैं जहाँ एक तरफ पुरुष और स्त्रियों में भेद को ख़त्म किया जा रहा है तो वही दूसरी तरफ उत्तराखंड (पहाड़) के कुछ ऐसे गाव आज भी हे, जहाँ स्त्रियों की स्थिति बहुत ही दयनीय है, शारीरिक तौर से कमज़ोर और मानसिक तौर से अपने ही अस्त्तिव से बेखबर, आइये नज़र डालते है उत्तराखंड (पहाड़ो) में स्थित कुछ गाव के हालातो पर,

स्त्री जिन्हें स्वयं ब्रम्हा, विष्णु, महेश ने भी समान अधिकार दिये हे, वही देव भूमि में स्त्रियों का जीवन अत्यंत कष्टकारी हे,ये चर्चा पढ़ने की ज़रूरत ही नही बल्कि महसूस करने की भी बात हे, कई गाव ऐसे है, जहाँ स्त्री मात्र एक नौकरानी और भोज से कम नही अपने ही घर मैं न तो अधिकार और न ही सम्मान  की हकदार है, सुबह जल्दी उठना और घर का काम करना खाना बनाना और जंगल चले जाना, जंगल में अनेक जंगली जानवरो का सामना करना और कभी कभी साँप, बिछु भालू या बाघ का शिकार हो जाना ,बात यही ख़त्म नही होती, भारी घास और लकडियो का गठड सर पर या पीठ पर उबड़ खाबड़ सड़क से गुजरते कोसो मील चलते हुए ,घर वालो के लिए और जानवरो के लिए भोजन का इंतज़ाम करती है ,जूझते हुए रास्तो से जब घर की और रुख करती हे तो घर वालो का ख्याल रखती हैं बच्चों के साथ खैलती हे और थकावट को भूल जाती हे, शाम होते ही खाना बनाकर  और अपूर्ण भोजन खुद करके, जब बिस्तर पर जाती हे तो पति के द्वारा कई  अत्त्याचारो का सामना भी करती हे,क्योंकि यहाँ शराब पीना एक परम्परा ही समझ लीजिये, और अधिकांश पुरुष कोई काम नही करते जानवरो के दूँध से ही जीवन चलता हे या फिर छोटे मोटे खेत से, जहाँ फिर घर की महिलाये ही अपनी पूरी शारारिक शक्ति लगा कर खेत से फल और थोडा बहुत अनाज प्राप्त करती हे और घर का चूल्हा जलाती हैं। इतना सब होने पर भी पति उनसे खुश नही रहते और शारारिक कमज़ोरी के चलते वो कई तरह की गभीर बीमारियों से घिर जाती हे, और प्रसव के दौरान अन्त में दम तोड़ देती हे, वही उनकी मृत्यु के बाद तुरत पुरुष दूसरा विवाह कर लेते हे और फिर वही प्रकिया शुरू हो जाती हे , पर दूसरे विवाह का अधिकार केवल पुरूष के पास हे , स्त्री के पास नही, ये कैसी स्थति हे जहाँ स्त्री पूरा शारीर पूरा जीवन कड़ी मेहनत करते गुजार देती हे वही उसका  आज भी कोई सम्मान नही या कहा जाये तो उसका कोई अस्तित्व नही,  ये कैसा व्यवहार हे उस स्त्री के साथ जो सम्पूर्ण जीवन निछावर कर देती है पर फिर भी अपनी ही पहचान नही बना पाती और कही खो जाती हे। क्या ये सब जिस कोने में हो रहा है, उसे देव भूमि कहे या कुछ और आप ही कहे कि इस देव भूमि को अब और किस नाम से पुकारा जाएं सोचिये और  विचार करिए.