आज चर्चा का विषय एक ऐसी महिला से संबंधित हैं, जो पेशे से अपना जिस्म बेचती हैं, ऐसी औरतों को समाज में वेश्या के नाम से जाना जाता है,जब मेरी उसकी बात एक counselling sessions के दौरान हुई तो ये जाना मैंने, कि कोई कैसे अपनी जरुरत के चलते ये औरते बिक जाता हैं, और कोई कैसे अपने हवस को पूरा करने के लिए उसे खरीद लेता हैं, बात किसी खिलौने की नही बल्कि जीती जागती एक महिला की हैं, जो एक रोज अपनी जरुरत को पूरा न कर पाने के कारण किसी के हवस का शिकार हो गयी, और उसके बाद उसे एक नई पहचान मिली वेश्या, इस session के बाद निष्कर्ष ये निकला कि जरुरत और हवस जब आपस मैं टकराते हैं तो ज़रूरत अपना दम तोड़ देती हैं, और हवस जरुरत को कुचल कर मुस्कुराकर आगे बढ़ जाता हैं, यदि किसी ने उस औरत की समय रहते उसकी जरुरत को पूरा किया होता तो उसे वैश्या की पहचान न मिली होती, धन एक ऐसी ज़रूरत थी उसके लिए, जिसने उस औरत को उसके अस्तित्व से छीन्न-भिन्न करके एक ऐसी पहचान से भर दिया, जहाँ हर रोज कोई न कोई उसकी मान मर्यादा को टक्कर मार कर जाता हैं, अब तो हाल ऐसा हे उसका कि वो कौन हे, ये भी जानना नही चाहती,
ज़रा सोचिये क्या हमे अभी भी केवल विचार कर के शांत हो जाना चाहिए, या कुछ करने का समय आ गया। यदि हमारी हवस किसी को बर्बाद कर सकती हैं, तो क्या वह हवस सही है। यदि हमारे पास धन का कोई अभाव नही हैं तो क्यों नही हम उस धन से किसी की ज़रूरत को पूरा कर सकते, क्यों हम इतना नीचे गिर जाते है की हमें शर्म तक नहीं आती ऐसा काम करने में.....आज जरुरत है उस सोच को बदलने की एक सकारात्मक कदम उठाने की खुद को बदलने कि.......