प्रिय अनुज,
आज मैं तुमसे कुछ बात करना चाहता हूँ जो शायद तुम्हारे सामने कभी कह नहीं सकूंगा, इसी लिए ये पत्र लिख रहा हूँ, मुझे अच्छे से याद है जब तुम पैदा हुए तो मैं खुश नहीं था, उसकी वजह थी मेरा मेरी माँ के प्रति असीम प्रेम, मैं नहीं चाहता था की मैं अपने माँ का प्रेम किसी और के साथ साझा करू, वो पल मैं स्वार्थी हो गया था जो की सबसे बड़ी भूल थी.
हर बात मेरे जहन में मानो ताज़ा हो अभी, बचपन में कैसे हम साथ में खेला करते थे, साथ में हमारा कार्टून देखना, वो wwf देखना, वो जो बचपन में हमने wwf के कार्ड इकट्ठा किये थे न वो आज भी शायद रखे है, वो गर्मी की छुट्टीओं में एक साथ अपने ननिहाल जाना, वो तुम्हारा बचपन से ले कर आज भी हर कीमती चीज़ मुझे देना सब मेरे जहन में है, तुम आज भी मेरे कपड़ें पहनने के लिए आतुर रहते हो, जबकि तुम दुनिया के बेहतरीन मुकाम में हो, तुम्हारे जैसा विशाल ह्रदय बहुत कम लोगों के पास देखा है मैंने,आज तक मुझे ऐसा कोई वाकया याद नहीं आ रहा जब तुमने मेरा सम्मान न किया हो, बचपन से लेकर आज तक मेरे प्रतितुम्हारे प्रेम में मुझे कोई अंतर नज़र नहीं आया, तुम उतना ही प्रेम और सम्मान मेरा हमेशा किये, बड़े भाई हो कर भी मैंने कई बातें तुमसे सीखी है और ये बात कहने में मुझे कोई गुरेज नहीं, जो त्याग और प्रेम मैंने अपने लिए तुम्हारे मन में देखा है ठीक वैसा ही प्रेम मैंने कहानियों में लक्ष्मण का सुना है अपने अग्रज राम के प्रति, मैं राम तो नहीं बन सकता मगर यकीन मानो तुम मेरे लिए मेरे लक्ष्मण जरूर हो. अगर मेरा अगला जन्म हुआ तो मैं हर जन्म में तुम्हे अपने भाई के रूप में पाना चाहूँगा, ये पत्र महज कुछ शब्द नहीं मेरी भावनाएं है जो मैं कभी तुमसे कह नहीं सकता. तुम आज जिस मुकाम पर हो वो तुम्हारी लगन और मेहनत का नतीजा है जिसका श्रेय सिर्फ और सिर्फ तुम्हे ही जाता है, यकीन मानो तुम दुनिया का बेहतरीन काम कर रहे हो, तुमने अपने माता-पिता का अपने अग्रज का अपनी जन्मभूमि का हर ऋण अदा कर दिया है, बस तुम हमेशा खुश रहो, तुम्हारी हर परेशानी मुझसे होकर गुजरे....
तुम्हारा अग्रज
मौलिक लेखक- डॉ शशांक तिवारी