एक सैनिक की पत्नी जब माँ बनती है और अपने बच्चे को जन्म देती है उस वक़्त वो सैनिक सरहद पे भारत माँ की रक्षा कर रहा होता है, इधर उसका बच्चा जन्म लेता है मगर जन्म के दो वर्षों बाद भी वो सैनिक घर वापस नहीं आ पाता अपने फर्ज़ के कारण और जब आता है तो अपने पैरों पर नहीं कन्धों पर आता है, सैनिक की पत्नी अपने बच्चे का परिचय अपने पिता से कराती है और कहती है की ये भारत माँ के सेवा करते हुए शहीद हुए है ये तुम्हारे पिता है इन्हें नमन करो, तब वो बच्चा अपनी माँ से पूछता है की ये शहीद का क्या काम होता है तब उसकी माँ जबाब देती है-
ණ जो अपने से ज्यादा देश के लिए होता है
जो सरहद पे रहता है और देश की लिए जीता है
जो अपनी लकीरे देश के नाम बनाता है
और एक दिन उसी देश के लिए हसते हसते मर जाता है
खुदा से भी बढ़ कर उसका नाम होता होता है
बस यही शहीद का काम होता है
बस यही शहीद का काम होता हैණ
मौलिक लेखक- शशांक तिवारी