मेहंदीपुर वाले बालाजी (हनुमान जी महाराज)

Author   /  Reporter :     Team Hindustan

राजस्थान के मेहंदीपुर वाले बालाजी देश ही नहीं दुनियाभर में लोगों के लिए श्रद्धा और आस्था के केंद्र हैं। कहते हैं कि यह ऐसा स्थान है जहां नास्तिक से नास्तिक व्यक्ति भी आस्तिक बन जाता है, आज के वैज्ञानिक युग के वैज्ञानिक भी यहां नतमस्तक हुए बगैर नहीं रहते है। चमत्कारों से भरा हुआ यह स्थान लोगों को सहसा ही अपनी ओर खींच लेता है।

हर दिन बालाजी महाराज के दर्शन करने के लिए भक्तों की लम्बी कतार देखी जा सकती है , यह मंदिर अरावली पहाड़ियों के बीच बना हुआ है, इसे घाटा मेहंदीपुर के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर का इतिहास लगभग हज़ार साल पुराना है।श्री बालाजी महाराज(हनुमान जी), प्रेतराज सरकार और श्री कोतवाल (भैरव) जी महाराज तीनों ही देवों की इस स्थान पर प्रधानता है जो लगभग हज़ार साल पहले यहां प्रकट हुए थे।

कुछ ऐसा है बालाजी का इतिहास-एक बार यहां महंतजी के पूर्वजों को स्वप्न में एक अद्भुत शक्ति दिखाई दी। वे स्वप्नावस्था में उस ओर चल दिए और उन्होंने देखा उनके सामने लाखों दीप सहसा जल उठे। वे इस दृश्य देख अचंभित हो उठे, फिर स्वप्न में उन्हें उसी स्थान पर तीन मूर्तियां के साथ विशाल वैभव दिखाई दिया, साथ ही एक फ़ौज भी दिखाई दी, फ़ौज के सरदार ने मूर्तियों को प्रणाम किया। उसके साथ ही उन्हें एक आवाज़ सुनाई दी, बालाजी महाराज ने स्वयं प्रकट होकर कहा ‘उठो भक्त मेरी सेवाओं का भार ग्रहण करो मैं अपनी लीलाओं का विस्तार करूंगा’ ।

सुबह महंतजी ने यह घटना क्षेत्र के लोगों को सुनाई और उन्ही के साथ मिलकर उन्होंने बालाजी महाराज की एक छोटी सी तिवाड़ी उस स्थान पर बना दी। काफी समय बाद एक शासक ने श्री बालाजी की मूर्ति निकालने के लिए खुदाई करवाई लेकिन वह सफल ना हो सका, उसके हाथ सिर्फ मूर्ति का ऊपरी भाग ही आया मूर्ति के पैर कहां तक गए हैं, यह काफी खुदाई के बाद भी वह ना जान सका। कहा जाता है कि तब से किसी को भी श्री बालाजी के चरणों के दर्शन आज तक नहीं हुए।


मेंहदीपुर बालाजी को दुष्ट आत्माओं से छुटकारा दिलाने के लिए दिव्य शक्ति से प्रेरित हनुमानजी का बहुत ही शक्तिशाली मंदिर माना जाता है। यहां कई लोगों को जंजीर से बंधा और उल्टे लटके देखा जा सकता है। यह मंदिर और इससे जुड़े चमत्कार देखकर कोई भी हैरान हो सकता है। शाम के समय जब बालाजी की आरती होती है तो भूतप्रेत से पीड़ित लोगों को जूझते देखा जाता है।

गीताप्रेस गोरखपुर द्वार प्रकाशित हनुमान अंक के अनुसार यह मंदिर करीब 1 हजार साल पुराना है। यहां पर एक बहुत विशाल चट्टान में हनुमान जी की आकृति स्वयं ही उभर आई थी। इसे ही श्री हनुमान जी का स्वरूप माना जाता है। इनके चरणों में छोटी सी कुण्डी है, जिसका जल कभी समाप्त नहीं होता। यह मंदिर तथा यहाँ के हनुमान जी का विग्रह काफी शक्तिशाली एवं चमत्कारिक माना जाता है तथा इसी वजह से यह स्थान न केवल राजस्थान में बल्कि पूरे देश में विख्यात है

कहा जाता है कि कई सालों पहले हनुमानजी और प्रेत राजा अरावली पर्वत पर प्रकट हुए थे। बुरी आत्माओं और काले जादू से पीड़ित रोगों से छुटकारा पाने लोग यहां आते हैं। इस मन्दिर को इन पीड़ाओं से मुक्ति का एकमात्र मार्ग माना जाता है। मंदिर के पंडित इन रोगोंं से मुक्ति के लिए कई उपचार बताते हैं। शनिवार और मंगलवार को यहां आने वाले भक्तों की संख्या लाखों में पहुच जाती है। कई गंभीर रोगियों को लोहे की जंजीर से बांधकर मंदिर में लाया जाता है। यहां आने वाले पीडित लोगों को देखकर सामान्य लोगों की रूह तक कांप जाती है। ये लोग मंदिर के सामने ऐसे चिल्ला-चिल्ला के अपने अंदर बैठी बुरी आत्माओं के बारे में बताते हैं, जिनके बारे में इनका दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं रहता है। भूत प्रेत ऊपरी बाधाओं के निवारणार्थ यहां आने वालों का तांता लगा रहता है। ऐसे लोग यहां पर बिना दवा और तंत्र मंत्र के स्वस्थ होकर लौटते हैं।

बादशाहों ने मूर्ति को नष्ट करने की थी कोशिश- कहा जाता है कि मुस्लिम शासनकाल में कुछ बादशाहों ने इस मूर्ति को नष्ट करने का प्रयास किया। हर बार ये बादशाह असफ़ल रहे। वे इसे जितना खुदवाते गए मूर्ति की जड़ उतनी ही गहरी होती चली गई। थक हार कर उन्हें अपना यह कुप्रयास छोड़ना पड़ा। ब्रिटिश शासन के दौरान सन 1910 में बालाजी ने अपना सैकड़ों वर्ष पुराना चोला स्वतः ही त्याग दिया। भक्तजन इस चोले को लेकर समीपवर्ती मंडावर रेलवे स्टेशन पहुंचे, जहां से उन्हें चोले को गंगा में प्रवाहित करने जाना था। ब्रिटिश स्टेशन मास्टर ने चोले को निःशुल्क ले जाने से रोका और उसका लगेज करने लगा, लेकिन चमत्कारी चोला कभी मन भर ज्यादा हो जाता और कभी दो मन कम हो जाता। असमंजस में पड़े स्टेशन मास्टर को अंततः चोले को बिना लगेज ही जाने देना पड़ा और उसने भी बालाजी के चमत्कार को नमस्कार किया। इसके बाद बालाजी को नया चोला चढ़ाया गया। एक बार फिर से नए चोले से एक नई ज्योति दीप्यमान हुई।