हमारा भारत देश जहाँ धर्म के नाम पर सब कुछ मुमकिन है, इसे हम अपनी खुशनसीबी समझे या फिर एक बोझ जहाँ हमें न चाहते हुए भी हमें अपने सर को झुकाना पड़ता है कभी अपनों के दबाव में तो कभी मजबूरी में I शायद कभी कभी हम धर्म के नाम पर कुछ ऐसा कर जाते है जिसकी इजाजत न तो धर्म देता और न ही समाज I
हमारे देश में जो भी धर्म के नाम पर होता आ रहा है शायद वो किसी और देश में नहीं होता, फिर चाहे वो नेताओं का वोट बैंक हो या फिर बाबाओं का धर्म बैंक I हमारा देश दुनिया का सब से बड़ा मजहबी देश है यही कई धर्म एक साथ रहते है और उन्हें मानने वाले भी, मगर सब के अपने अपने तरीके, कोई धर्म के नाम पर कब्र की पूजा करता है जिसे मुसलमान दरगाह का नाम देते है या फिर पत्थर में जान डालने की एक अनोखी कोशिश हो जिसे हिन्दू धर्म में प्राण प्रतिष्ठा के नाम से जाना जाता है या फिर एक बेबस इंसान की पूजा ही क्यों न की जाती हो जिसे इसाई धर्म अपनाता हो I
ये तो एक उदहारण मात्र है जिससे हम काफी हद तक धर्म को परिभाषित कर सकते है, आज इंसान को इंसान से ज्यादा पत्थरों, मुर्दों और बेबसी पर भरोसा है, इसी लिए अगर आज़ादी के 60 वर्षों बाद भी पलट के देखे तो ऐसा लगता है की मंजिल भी नहीं पाई और रास्ते भी नहीं बदलेI
चलिए हम एक उदाहरण लेते है, कहते है की हमारे धर्मो में लिखा है की इंसान को जीवन देने वाला भगवान् है जो सर्व शक्तिमान है जो हर जगह व्याप्त है चाहे वो फिर पत्थर का एक छोटा सा अंश ही क्यों न हो (कंकड़ कंकड़ शंकर है) मगर आज का इंसान भगवान् से भी बड़ा हो गया है जो की पत्थर में जान डालने की कोशिश करने लगा है और उसे नाम देता है भगवान् की प्राण प्रतिष्ठा का उसके बाद उस पत्थर को इंसानों से ज्यादा मानने लगता है I ये हमारे देश की विडम्बना है की हम उसे नहीं मानते जिसे कुदरत ने जान दी है और अपने द्वारा एक पथर में जान डालने की नाकाम कोशिश को इंसानों से ज्यादा पूजने लगते है और शायद इसी लिए लोग इंसानों की जगह पत्थर बनते जा रहे है या यूँ कहे की पथर के रूप में इंसानों ने खुद को भवान कहलाने की अनोखी तरकीब निकाल ली है
आज हमें जरुरत है अपने सोच को बदलने की जो इंसानों को की जगह पत्थर, मुर्दे या फिर बेबसी को पूजते है, आज जरुरत है उस सोच की जिसमे एक जीव दुसरे जीव को मने फिर चाहे हो इंसान हो या जानवर.
कहते है ये सतयुग नहीं कलयुग है, इसमें युग में भगवान पत्थरों में ही वास करते है , मगर सतयुग और कलयुग में एक छोटा सा ही फर्क है, सतयुग में जीवों की पूजा होती थी फिर चाहे वो इंसान हो या जानवर मगर कलयुग में पत्थरों की, जिस दिन इंसान इंसान को मानने लगेगा उस दिन कलयुग में भी सतयुग आ जायेगा .............