बहादुर

Author   /  Reporter :     Dashmesh Kaur (Mahi)

बहादुर, नाम से प्रतीत होता है।जिसमे बहुत ज्यादा तागत या power हो। पर बहादुर कोई मशीन का नाम नही, बल्कि जीते जागते इंसान का नाम है, पर ये नाम किसी एक का नही बल्कि उन तमाम लोगो का हे , जो नेपाल से रोजी रोटी कमाने अकेले या अपने परिवार को लेकर भारत आते है,

बहादुर और उनका पूरा परिवार बेहद मेहनत के साथ एक जुट होकर काम करता है,और दो वक़्त की रोटी कमाता हैं, बहादुर अपनी पीठ पर 50 kg से भी ज्यादा बोझ उठाता है, यहाँ तक की बहादुरो के परिवार की भी महिलाये पत्थर ढोती हैं या मज़दूरी करती, गर्भवस्था में भी बखूबी मेहनत करती है,पर इनका कोई घर नही होता, जहा मज़दूरी करते हे ,वही सड़क के किनारे रहते हैं, और हर मौसम से जूझते हे, धूप,बारिश, आंधी, तूफान ईश्वर के हर कहर का सामना ख़ुशी ख़ुशी करते हैं,बात तो तब अलग हैं कुछ, जब भारत में पूरी ज़िदगी काम करने के बाद उन्हें भारत की सुविधाये मिलने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता हैं, और सरकारी सेवाओं का लाभ शीघ्र और सही समय पर नही मिल पाता,क्यूकि इनके पास भारत की नागरिकता नही होती। ऐसे में इनकी गिनती न के बराबर हैं, या यूँ कहे की हैं ही नही,क्यूकि सरकारी दस्तावेज़ में इनका कोई नाम नही हैं,

 

इसके चलते यदि कभी इनके साथ कोई हादसा हो जाता हैं, तो भी कोई सरकारी लाभ तुरंत नही मिल पाता। वैसे जहाँ ये रहते हैं वहाँ जिलाधिकारी को सुचना देना आवश्यक होता हैं,पर ये कार्य कितना गतिमान हैं, ये तब पता चलता हैं जब इन्हें कोई लाभ नही मिलता, इतना बोझ और मेहनत के फलस्वरूप जब शरीर धीरे धीरे जबाब देने लगता हैं और कमज़ोर पड़ने लगता हैं बीमारिया घेर लेती हैं, तो आँखों में आंसुओ के बजाये कुछ और नही बचता, ये आंसू कमज़ोर शरीर या बीमारी की वजह से नही बल्कि इसलिए निकलते हैं,कि कम उम्र में ही अपना देश अपना परिवार छोडकर पूरी मेहनत के साथ अपना और अपने परिवार का पेट पालते हैं, फिर भी गरीबी दामन नही छोड़ती, महगाई और उम्र के बढ़ने के साथ गरीबी भी बढ़ती चली जाती हैं, और मेहनत दम तोड़ देती है, पूरी उम्र पार करने के बाद भी न शौक़ पुरे होते है, न ज़रूरते, यहाँ तक की इज़्ज़त भी नसीब नही होती, अगर कुछ नसीब होता हैं, तो हर उस चेहरे को जो नेपाल से मेहनत करने और बोझ उठाने आया है उसका एक नाम और एक पहचान बहादुर............