आप अपने ड्राईवर से किस अंदाज़ में पेश आते हैं? आप अपने किसी भी ऐसे आदमी के साथ जो आपको सर्विस देता है उसके काम को कितनी तरजीह देते हैं। या फिर आप ये मान के चलते हैं कि ये जो काम कर रहा है। उसके बदले आप इसे पैसे देते हैं। इसमें कौन सा ये मेरे ऊपर एहसान कर रहा है? ये बात भी ठीक है आप किसी आदमी को उसकी सर्विस के बदले पैसे देते हैं। लेकिन कभी सोचा है कि वो आदमी उस थोड़ी सी रकम के बदले आपकी जिंदगी का हिस्सा हो जाता है। वो आपका ड्राईवर, आपके घर में काम करने वाला या आपके ऑफिस का सेवादार भी हो सकता है। इस सिरे से आज तक नहीं सोच पाए हैं तो ये खबर आपके लिए है।
महाराष्ट्र में एक जिला है। अकोला। वहां के कलेक्टर हैं जी श्रीकांत। कलेक्टर मतलब समझते हैं न! जिले का सर्वे-सर्वा। जो कह दिया वो कानून। ऐसा कहा जाता है, बात चीत में। उन्होंने अपने ड्राईवर को उनके आखिरी दिन की सर्विस पर खुद गाड़ी में बिठा कर ऑफिस तक छोड़ा। जहां ड्राईवर दिगम्बर थाक को विदाई दी जानी थी।
गाड़ी जिस पर पीली बत्ती लगी है। उसे दुल्हन की तरह सजाया जाता है। दिगम्बर थाक के लिए ठीक वैसे ही गाड़ी की गेट खोली जाती है, जैसे आज से पहले वो अपने साहबों के लिए खोलते रहे हैं। दिगंबर अपने क्रिजदार सफ़ेद युनिफॉर्म में आकर गाड़ी में बैठते हैं। लेकिन जगह बदल जाती है। आज वो उस जगह बैठते हैं। जहां आज से पहले उनके साहिबान बैठते रहे हैं। कलेक्टर साहब खुद गाड़ी की ड्राइविंग सीट पर पहुंचते हैं और ऑफिस के लिए रवाना हो जाते हैं।
आपको-हमको ये सुनने में बहुत ही आम लग रहा हो। लेकिन वैसे लोग जो इन साहिबान की सेवा में लगे रहते हैं उनसे पूछिएगा कि उनके लिए ये कितना बड़ा तोहफा रहा होगा। दिगंबर थाक जिनकी उम्र 58 साल है। उन्होंने अपने सर्विस में 18 कलेक्टरों को अपनी सर्विस दी है।
जी श्रीकांत कहते हैं कि, "करीबन 35 सालों तक उन्होंने अपनी सेवा से राज्य की मदद की है। ये इन्हीं की सर्विस है कि कलेक्टर रोज सुरक्षित अपने काम के लिए ऑफिस तक पहुंच सकें। मैं उनका ये आखिरी दिन यादगार बनाना चाहता था और उनका शुक्रिया अदा करना चाहता था।"
तारीफ़ करनी होगी ऐसे साहिबान की भी और सलाम करना सीखना होगा हमें अपने सेवादारों को, उनकी सेवा के लिए।