कामसूत्र के नाम से ही कुछ लोग इसे अश्लील या कामुक साहित्य मानते हैं। परंतु भारतीय संस्कृति में कभी भी ‘काम’ को हेय नहीं समझा गया है। विद्वानों ने काम को ‘दुर्गुण’ या ‘दुर्भाव’ न मानकर इन्हें चतुर्वर्ग अर्थ, काम, मोक्ष, धर्म में स्थान दिया गया है।
क्यो जरूरी है कामसूत्र : प्राचीन शास्त्रों में जीवन के चार पुरुषार्थ बताए हैं- ‘धर्म’, ‘अर्थ’, ‘काम’ और ‘मोक्ष’। सरल शब्दों में कहें, तो धर्मानुकूल आचरण करना, जीवन-यापन के लिए उचित तरीके से धन कमाना, मर्यादित रीति से काम का आनंद उठाना और अंतत: जीवन के अनसुलझे गूढ़ प्रश्नों के हल की तलाश करना मोक्ष है। इसमें 'काम' को लेकर अत्यधिक चर्चा होती है परंतु वासना से बचते हुए आनंददायक तरीके से काम का आनंद उठाने के लिए कामसूत्र के उचित ज्ञान की आवश्यकता होती है।
यदि व्याकरण की दृष्टि से देखें तो कान द्वारा अनुकूल शब्द, त्वचा द्वारा अनूकूल स्पर्श, आंख द्वारा अनुकूल रूप, नाक द्वारा अनुकूल गंध और जीभ द्वारा अनुकूल रस का ग्रहण किया जाना ‘काम’ है। कान आदि पांचों ज्ञानेन्द्रियों के साथ मन और आत्मा का भी संयोग आवश्यक है।
वात्स्यायन का मत है कि मनुष्य को काम का सेवन करना चाहिए, क्योंकि कामसुख मानव शरीर की रक्षा के लिए आहार के समान है. काम ही धर्म और अर्थ से उत्पन्न होने वाला फल है। वात्स्यायन रचित ‘कामसूत्र’ में अच्छे लक्षण वाले स्त्री-पुरुष, सोलह श्रृंगार, सौंदर्य बढ़ाने के उपाय, कामशक्ति में वृद्धि से संबंधित उपायों पर विस्तार से चर्चा की गई है। इस ग्रंथ में स्त्री-पुरुष के ‘मिलन’ की शास्त्रोक्त रीतियां बताई गई हैं। किस अवसर पर संबंध बनाना अनुकूल रहता है तथा कब निषिद्ध, जैसी बातों को इस ग्रंथ में विस्तार से बताया गया है।