हिन्दू धर्म में वैसे तो बहुत से संप्रदाय के लोग रहते हैं, जो अलग अलग परम्परा और प्रथा को मानते हैं और अनुकरण करते है, इसी हिन्दू धर्म का एक सप्रदाय अघोर पंथ भी है. इसके नियमो को पालन करने वालों को ही अघोरी कहा जाता है,इनकी उत्पत्ति काल के विषय में कोई निश्चित प्रमाण नहीं मिले है, लेकिन इनको कपालिक संप्रदाय के समान माना जाता है.
भगवान् शंकर के अनेक रूपों में एक रूप अघोर का भी होता है. इसलिए अघोरियों को भगवान शंकर का ही रूप कहा जाता है. अघोरी शिव की साधना करते हैं इसलिए शिव साधक भी कहे जाते है. अघोरीयों का जीवन बहुत रहस्यमयी लगता है. उनकी साधना जीवन, रहन सहन, रीती -रिवाज, परम्पराएं – प्रथाएं सामान्य हिन्दू धर्म को मानने वालो से बिलकुल ही भिन्न है, जिसके कारण ये लोगो से अलग शमशान में रहते है, वैसे ये लोग बहुत ही सरल और सहज रहते हैं, भेदभाव में नहीं मानते. आज हम इन अघोरी की जीवन बारे में आपको बताएँगे और जानेगे क्या है अघोरीयों की प्रथाएं !
तो आइये जानते हैं क्या है अघोरीयों की प्रथाएं
- ये लोग तीन तरीके की साधना करते हैं. स्मशान में रहकर शव पर खड़े होकर भगवान शिव की साधना करते है. इसलिए इनको शिव साधना और शव साधना कहा जाता है. स्मशान साधना में ये लोग अपने आम रिश्तेदारों को शामिल करते हैं. इसमें शवों के स्थान पर शवपीठ या श्मशान में शवों का दाह संस्कार कर पूजा की जाती है. फिर उन शव पर गंगा जल छिड़का जाता है और प्रसाद रूप में शव का मांस और शव पर चढ़ा मावा दिया जाता है.
- अघोरपंथ सबसे अधिक स्मशान साधना को मानते हैं और इस साधना को ही करना ज्यादा पंसद किया जाता है क्योंकि वो लोग इस साधना को महत्वपूर्ण और फलदायक मानते हैं.
- अघोरी मांस को ठीक उसी तरह खाते हैं जैसे आम इंसान स्वादिष्ट पकवानों को खाते है.
- इनको शव गंगा नदी से मिलते है. जो शव गंगा नदी में बहाई जाती है, वह पानी में हल्की होकर बहार तैरती है. उसको ये अघोरी नदी से निकाल कर अपनी तंत्र सिद्धि करते हैं.
- इन अघोरी को बल इसी तंत्र सिद्धि से प्राप्त होता है, जिसको नाकारा नहीं जा सकता. उनमे आम लोग से बहुत ज्यादा शक्ति होती है.
- अघोरी अपना स्वभाव हठी बनाए रखते हैं और एक बार जिस बात पे अड़ जाते हैं उसको पूरा किये बिना नहीं छोड़ते. उनकी हठ देखने पर लगता है जैसे वह गुस्सा है लेकिन वो गुस्सा नहीं होते उनका मन शांत ही रहता है.
- यह लोग काले रंग का वस्त्रों पहनते है और गले में धातु से बनी हुई नरमुंड माला पहनते हैं.
- यह अपनी कुटिया स्मशानों में ही बनाते हैं, जिसके आस पास शव की चिताएं जलती हो और छोटी धूनी जलती हुई प्रतीत होती हो.
- यह लोग आम इंसान से दोस्ती नहीं करते लेकिन कुते जरुर पालते है.
- अघोरी के लिए सब मांस एक सामान होता है लेकिन कहा जाता है कि ये कभी गाय मांस नहीं खाते. गाय मांस न खाने के पीछे वजह गाय का शिव दूत होना हो सकता है. प्यास लगने पर वे खुद का ही मूत्र भी पीते हैं.
- यह लोग दुनिया के लोगों से दूर रहते है और ज्यादा समय सोने और रात में साधना कर सिद्धि जाप में बिताते है.
- अघोरीयों के लिए कहा जाता है कि वह अपनी तंत्र साधना और सिद्धि के दम पर हर पराशक्तियों को वश में कर लेते हैं.
- यह अपनी सिद्धि की जल्दी परिणाम के लिए सबसे ज्यादा सिद्ध स्थान उज्जैन (मध्य प्रदेश), तारापीठ का स्मशान (पश्चिम बंगाल), त्रंबकेश्वर (नासिक) और कामाख्या पीठ (असम) के स्मशान को मानते है और वही साधना करते हैं. यह चारों इनका सिद्धि प्राप्ति का गढ़ माना जाता है.
इन अघोरीयों की प्रथाएं कोई आम इंसान नहीं समझ सकता. इन अघोरीयों की प्रथाएं कमजोर दिल वाले बर्दास्त नहीं कर पाते. इनकी प्रथाएं आम इंसानों को भी बहुत भयानक लगती है. इसको कोई सहजता से स्वीकार नहीं करते इसलिए ये अघोरी सबसे दूर रहते है.