कहते हैं इंसान हालात से सीखता है, लेकिन हालात से निपटना सीखना हो तो किताबों से प्रेरणा लेनी पड़ती है। बावजूद इसके इंटरनेट के जमाने में लोग किताबों से दूर होते जा रहे हैं। इस बात को समझा ओडिशा की रहने वाली शताब्दी मिश्रा और उनके दोस्त अक्षय रावतारे ने। जिसके बाद दोनों निकल पड़े लोगों तक किताबें पहुंचाने के लिए, उनको जागरूक करने के लिये। दोनों ने इसकी शुरूआत दो साल पहले ओडिशा से की और राज्य के सभी जिलों का दौरा किया। इसके बाद पिछले साल दिसंबर में 20 राज्यों का दौरा कर 10 हजार किलोमीटर की यात्रा की और लोगों को बताया कि अच्छा इंसान बनने के लिए किताबें पढ़ना कितना जरूरी है। दोनों ने अपनी इस यात्रा को नाम दिया ‘रीड मोर इंडिया’ कैम्पेन। अब इनकी योजना एक बार फिर ओडिशा के अलग अलग जिलों में जाकर लोगों को किताबों की खूबियों के बारे में बताने की है। इतना ही नहीं ओडिशा के भुवनेश्वर शहर में इनका अपना ‘वॉकिंग बुक फेयर’ नाम से बुक स्टोर भी है। जहां साल भर किताबों पर छूट मिलती है।
शताब्दी मिश्रा (32) और अक्षय रावतारे साल (36) साल 2014 से ‘रीड मोर इंडिया’ नाम से एक कैम्पेन चला रहे हैं। इसको शुरू करने से पहले अक्षय रावतारे भुवनेश्वर के एक बुक स्टोर में फ्लोर मैनेजर के तौर पर काम करते थे। जबकि शताब्दी फ्रीलांस कुछ काम कर रही थीं। दोनों की पहली मुलाकात साल 2013 में एक बुक स्टोर में हुई जिसके बाद इनमें अच्छी दोस्ती हो गई। दोनों ने देखा कि समाज में काफी लोग स्कूल कॉलेज में पढ़ लिख तो रहे हैं लेकिन उनको कई चीजों की समझ गहराई से नहीं है जिसकी वजह से समाज में लोग एक दूसरे पर विश्वास नहीं करते। इसके अलावा कई जगह स्कूल और कॉलेज तो हैं लेकिन वहां लाइब्रेरी नहीं है। जिन स्कूल और कॉलेज में लाइब्ररी होती हैं वहां भी पाठ्यक्रम के अलावा दूसरी किताबें नहीं मिलती हैं। अक्षय रावतारे का कहना है,
“आज लोग ग्रेजुएट हो जाते हैं, मास्टर्स की डिग्री हासिल कर लेते हैं लेकिन पाठ्यक्रम के अलावा उन्होने कोई दूसरी किताबें नहीं पढ़ी होती हैं, इस कारण उनके पास डिग्री होते हुए भी वो कई दूसरी चीजों से अंजान होते हैं। जिन चीजों से समाज बेहतर बनता है।”
अक्षय रावतारे के मुताबिक दूसरी ओर बात अगर पिछड़े इलाकों की करें तो वहां पर भी मल्टीनेशनल कंपनियों के कोला, चिप्स और दूसरी चीजें आसानी से मिल जाएंगी लेकिन वहां के लोगों के बीच किताबें ढूंढने से भी नहीं मिलेंगी। इतना ही नहीं लोग गांव में मंदिर या कोई दूसरा पूजा स्थल बनाने के लिए लाखों रुपये खर्च कर देते हैं लेकिन पढ़ने के लिए कोई लाइब्रेरी नहीं खोलता। लोगों की इसी सोच को बदलने के लिए तब इन्होने सोचा कि क्यों ना किताबों के प्रति लोगों को जागरूक किया जाये। इसके लिए सड़क पर ही किताबों की प्रदर्शनी लगाई जाये। ताकि जो लोग किताबों को देखेंगे तो शायद उससे समाज में कोई बदलाव आये। अक्षय रावतारे के मुताबिक चंडीगढ़ जैसे शहर में जहां पचासों गाड़ियों के शोरूम हैं लेकिन वहां पढ़ने के लिए दस सार्वजनिक लाइब्रेरी भी नहीं है।
शताब्दी और अक्षय रावतारे ने सबसे पहले अपने इस काम की शुरूआत अपने गृह राज्य ओडिशा से की। इसके लिए ये लोग बॉक्स में किताबें इकट्ठा कर सड़क किनारे उनको प्रदर्शित करते थे। धीरे धीरे इन लोगों ने पैसा इकट्ठा किया और दोस्तो ने एक पुरानी ओमनी वेन इस काम के लिए दे दी। जिसमें कुछ सुधार कर किताबों के लिए जगह बनाई जिसके बाद शताब्दी और अक्षय रावतारे ने साल 2014 में ओडिशा के सभी 30 जिलों का दौरा किया और सड़कों पर, स्कूलों और कॉलेज में जाकर लोगों को किताबों के प्रति जागरूक करने की कोशिश की।
लोगों से मिली अच्छी प्रतिक्रिया के कारण इन दोनों ने साल 2015 दिसंबर में अपनी इस यात्रा को फिर शुरू किया और इसका नाम रखा “रीड मोर इंडिया”। इस दौरान इन दोनों ने अपने साथ कुछ प्रकाशकों को जोड़ा। इनमें हार्पर कोलिन्स इंडिया, पैन मैकमिलन इंडिया, और पैरागोन बुक्स इंडिया जैसे प्रकाशक भी शामिल थे। इस यात्रा के दौरान इन दोनों ने 10 हजार से ज्यादा किलोमीटर की यात्रा कर 20 राज्यों का दौरा किया। इस दौरान इन्होने सड़कों पर ही किताबों की प्रदर्शनी लगाई। जहां पर आकर लोग किताबें पढ़ सकते थे, खरीद सकते थे, उनसे जुड़ी जानकारी हासिल कर सकते थे। खास बात ये थी कि जो लोग किताबें खरीदना चाहते थे उनको बीस प्रतिशत की छूट पर ये किताबें देते थे। अक्षय रावतारे का कहना है,
“आज के दौर में लोग ये बताते नहीं थकते की उन्होने ये काम किया या वो काम किया लेकिन जब उनसे पूछो कि वो किताबें पढ़ते हैं तो उनका जवाब नकारात्मक होता है। इससे उनके विचार और सोच सीमाओं में बंधकर रह जाते हैं और उनको खुलने का मौका नहीं मिलता। ऐसे लोग भले ही अपने करियर में सफल हों लेकिन किताबें ना पढ़ने की वजह से वो काफी चीजों से अंजान रहते हैं।”
करीब तीन महीने की इस यात्रा के दौरान इन्होने अस्सी प्रतिशत अंग्रेजी और बीस प्रतिशत हिंदी किताबों का प्रदर्शन किया। अक्षय रावतारे का कहना है कि वो अपने पास ज्यादातर ऐसी किताबें रखते हैं जिनमें कहानियां होती हैं या फिर लोगों की जीवनी, ताकि पढ़ने वाले उनसे सबक ले सकें।
ये दोनों लोग जिन किताबों का प्रदर्शन करते हैं उनमें बच्चों की कहानियों के साथ बड़े लोगों के पढ़ने लायक कहानियां होती हैं। अपने तजुर्बे के बारे में अक्षय रावतारे बताते हैं कई बार लोगों को अचरज होता है कि वो इस तरह जगह जगह किताबें लेकर क्यों घूम रहे हैं। ऐसे लोगों के बारे में उनका मानना है कि वो शायद अपने को सुधारना नहीं चाहते हैं, या फिर अपनी जानकारी को बढ़ाना नहीं चाहते हैं। ऐसे लोग डिग्री पाकर ही खुश रहते हैं और वो उससे अधिक पाना नहीं चाहते हैं। हालांकि अपनी यात्रा के दौरान उन्होने बच्चों में किताबों को लेकर ज्यादा उत्साह देखने को मिला। वहीं दूसरी ओर उनकी कई परेशानियों का भी सामना करना पड़ा। अक्षय रावतारे के मुताबिक अपने इस कैंपेन के दौरान जब वो छत्तीसगढ़ के बिलासपुर क्षेत्र में थे तो स्थानीय पुलिस ने इनको करीब 2-3 घंटे थाने में बैठाये रखा और ये जानने में जुटे रहे कि ये दोनों वहां से क्यों जा रहे हैं, कहां जा रहे हैं। इसी तरह एक बार ये ओडिशा में एक विश्वविद्यालय के आगे किताबों की प्रदर्शनी लगा रहे थे तो वहां के प्रशासन ने उनको ऐसा करने से मना किया और उनको डराया धमकाया भी।
शताब्दी और अक्षय रावतारे ने “रीड मोर इंडिया” की यात्रा एक पिकअप ट्रक को जरिये शुरू की थी। जिसमें किताबों के लिए चार पक्तियां बनाई गई और हर पंक्ति में 1 हजार किताबें रखी गई थीं। यात्रा के दौरान किताबों के दाम इस तरह रखे गये थे कि आम आदमी भी चाहे तो वो उनको खरीद कर पढ़ सकता है। अक्षय रावतारे के मुताबिक ‘रीड मोर इंडिया’ के तहत मिलने वाली किताबों के दाम 50 रुपये से शुरू होकर सात सौ रुपये तक रखे गये थे। ये दोनों मिलकर ओडिशा और देश के दूसरे हिस्सों को मिलाकर 22 हजार किलोमीटर की यात्रा कर चुके हैं। इनके पास मिलने वाली किताबें तीन भाषाओं में हैं हिंदी, अंग्रेजी और उड़िया। शताब्दी मिश्रा और अक्षय रावतारे की भुवनेश्वर में ‘वॉकिंग बुक फेयर’ नाम से अपनी एक किताबों की दुकान भी है। जहां पर साल भर कई तरह के छोटे बड़े कार्यक्रम चलते रहते हैं। साथ ही लोग यहां आकर बीस प्रतिशत छूट में किताबें हासिल कर सकते हैं। अब इन लोगों की तमन्ना है कि ये एक बार फिर देश का इसी तरह भ्रमण करें, लेकिन उससे पहले मॉनसून के दौरान एक बार फिर इनकी योजना ओडिशा के अलग अलग शहरो में जाकर लोगों को किताबों के प्रति जागरूक करने की है।